The country wants concrete issues

Editorial: देश चाह रहा ठोस मुद्दे, भ्रम की स्थिति होनी चाहिए खत्म

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The country wants concrete issues

The country wants concrete issues: कांग्रेस नेता राहुल गांधी के विदेश की धरती पर भारत में लोकतंत्र के खतरे संबंधी बयान को लेकर देश की राजनीति में जैसा बवंडर आया हुआ है, वह स्वाभाविक नहीं है। यह राजनीतिक तापमान के चढऩे का अभी शुरुआती काल ही है। अगले वर्ष लोकसभा चुनाव होने हैं और इस वर्ष कई राज्यों में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं। ऐसे में सत्ताधारी भाजपा और कांग्रेस के नेतृत्व में एक हो रहा विपक्ष आपस में वर्चस्व की लड़ाई लड़ रहा है।

राहुल गांधी के इस बयान पर बहस जारी है कि उन्होंने जो कहा, वह कहां तक उचित है। लेकिन कांग्रेस का रूख यह बताता है कि वह अपने नेता के बयानों पर जरा भी विचार करने की इच्छा नहीं रखती, क्योंकि इससे उसे सुर्खियां मिल रही हैं। उसने देश के अंदर महंगाई, बेरोजगारी, एक कारोबारी के कथित घोटाले आदि को उठाकर इन्हें चुनाव के मुद्दे बना लिया है। जाहिर है, देश में महंगाई है, तमाम चीजों के दाम बढ़ रहे हैं, अन्य समस्याएं भी हैं। लेकिन इसके बावजूद हालात इतने खराब नजर नहीं आते कि उनके लिए देश की संसद को ठप कर दिया जाए। आजकल बजट सत्र जारी है, लेकिन संसद की कार्यवाही बीच-बीच में ठप हो जाती है और तमाम विधेयक धरे के धरे रह गए हैं।

भाजपा ने राहुल गांधी के बयानों को अगर मुद्दा बनाया है तो यह भी उसकी रणनीति का हिस्सा है। भारत आज दुनिया में एक चमकता सितारा है और प्रत्येक क्षेत्र में बढ़ रही उसकी क्षमता का विश्व कायल नजर आता है। विदेश नीति, व्यापार, संस्कृति, समाज, खेल आदि में वह लगातार शानदार प्रदर्शन कर रहा है। देश के अंदर कश्मीर जैसे मामले उसने सुलझाए लिए हैं, आतंकवाद की कमर उसने तोड़ दी है। देश में हाईवेज तेजी से बन रहे हैं, कारोबारी माहौल पटरी है। विदेशी निवेश के लिए भारत एक प्रमुख डेस्टिनेशन बन चुका है। विश्व के 20 प्रमुख देशों का सम्मेलन आजकल देश के अंदर विभिन्न राज्यों में हो रहा है। इन बैठकों के दौरान विदेशी मेहमान भारतीय समाज, संस्कृति, राजनीति और अर्थव्यवस्था का परिचय ले रहे हैं।

देश में कृषि क्षेत्र का विकास हुआ है, और तमाम क्षेत्रों में देश आगे बढ़ रहा है। हालांकि विपक्ष को यह सब नहीं दिखता है। आजादी के बाद के वर्षों की समस्याएं भी अब खत्म हो गई हैं, लेकिन विपक्ष को इनसे कोई वास्ता नजर नहीं आता। सवाल यही है कि आखिर कांग्रेस अगर देश की सत्ता में नहीं है तो क्या देश में लोकतंत्र खतरे में मान लिया जाए। आखिर यह राजनीति का कैसा स्वरूप है कि जो हमारे पास नहीं है, उसे स्वीकार ही न किया जाए।

गौरतलब है कि कांग्रेस का कहना है कि जिन्होंने देश की आजादी की लड़ाई में रत्ती भर भी योगदान नहीं दिया है, वे असली राष्ट्र विरोधी हैं। पार्टी का यह भी कहना है कि भाजपा को देशभक्ति के बारे में बताने के बजाय हमसे सीखना चाहिए। आखिर कांग्रेस नेताओं के इन बयानों को दंभपूर्ण नहीं माना जाना चाहिए। एक रिपोर्ट के हवाले से सामने आ रहा है कि देश में आपातकाल लगाने के बाद जब आम चुनाव हुए तो उनमें कांग्रेस को हार मिली थी। तब विदेश में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से भारत में लोकतंत्र के संबंध में प्रश्न पूछे गए थे, जिनके जवाब में उन्होंने यही कहा था कि यह देश का आंतरिक मामला है। इसे देश के अंदर उठाना ही बेहतर है। जाहिर है, आज के समय के कांग्रेस नेताओं को भी यह बात समझनी चाहिए।

हालांकि वे भाजपा सरकार के खिलाफ चीन, पाक, ब्रिटेन, अमेरिका और दूसरे देशों से मदद की गुहार लगाते हुए नजर आते हैं। क्या देश के अंदर ही कांग्रेस नेताओं को जनमानस तैयार करते हुए मौजूदा सरकार को बदलने के लिए काम नहीं करना चाहिए। राहुल गांधी ने अपनी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान कन्याकुमारी से श्रीनगर तक की यात्रा की, लेकिन इस दौरान सिवाय चर्चा में बने रहने के, वे देश के सम्मुख ऐसा एजेंडा खड़ा नहीं कर पाए कि देश आंदोलित हो जाए। वास्तव में विपक्ष को बोलने का पूरा अधिकार है, लेकिन मामला यह भी है कि विपक्ष बोल क्या रहा है। अदानी मामले में विपक्ष जेपीसी से जांच की मांग कर रहा है, लेकिन इससे पहले कांग्रेस के शासनकाल में हुए कितने घोटालों की ऐसी जांच हुई है?  वास्तव में सत्तापक्ष और कांग्रेस के बीच यह टकराव अंह का है। कांग्रेस नेताओं को लोकतंत्र संबंधी अपने बयानों पर विचार करना चाहिए क्योंकि वे हकीकत में आधारहीन नजर आते हैं। लोकतंत्र में वैचारिक मतभेद होना उसे और मजबूत बनाता है।

राहुल गांधी जो बात विदेश की धरती पर कह रहे हैं वही उन्हें अपने देश में अपने लोगों के बीच पूरे आत्मविश्वास से कहनी चाहिए। वहीं आजादी के आंदोलन में किसने क्या भूमिका निभाई, इसका मोल भी अब उसे नहीं वसूलना चाहिए। देश ठोस मुद्दे चाह रहा है, भ्रम की स्थिति खत्म होनी चाहिए। 

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